सोमवार, 28 मई 2012

' पढाई के साथ साथ चरित्र-गठन भी आवश्यक है '[52,53] परिप्रश्नेन

52.प्रश्न : व्यक्ति यदि समाज में नहीं  रहे, तो क्या उसका सामग्रिक विकास हो सकता है? 
ऊतर : यह एक काल्पनिक प्रश्न है। मनुष्य तो सामान्य रूप से समाज में ही वास करेगा, और कहाँ रहेगा ?
 समाज के बाहर तो वास करना संभव नहीं है। समाज के बाहर वास करने से भी किसी व्यक्ति  की उन्नति हो
 सकती है, किन्तु उसकी उन्नति तब तक परीक्षित नहीं हो सकती जब तक उस व्यक्ति का  जीवन परिवार 
या समाज के संस्पर्श में नहीं आता। इसीलिए, जो लोग समाज से कट कर, दूर बैठे नहीं रह सकते हैं, उनके  लिए स्वामीजी ने भी एक नये प्रकार का सन्यासी-संप्रदाय गठित किया था।
आशा है प्रश्न स्पष्ट हो रहा होगा। मैं घर-परिवार-समाज से कट कर जंगल में अकेले रहकर अच्छा बन 
गया। किन्तु मैं सचमुच अच्छा बन सका हूँ या नहीं,  उसको प्रमाणित कौन करेगा ? 
जब तक हम समाज के संस्पर्श में नहीं आते, तब तक ' मैं अच्छा हूँ '  उसको प्रमाणित नहीं किया जा सकता. जंगल के कोने में बैठकर चरित्र पकाने की चीज नहीं है। मेरा चरित्र गठित हो गया है या नहीं, इस सच्चाई को सबसे पहले (मेरी पत्नी या ) मेरे परिवार के निकट सम्बन्धी और समाज के लोग ही प्रमाणित कर सकते हैं। इसलिये समाज से भागकर नहीं, घरगृहस्थी में और समाज में रहकर ही मेरे चरित्र की परीक्षा हो सकती है।  
53. प्रश्न : इस सुविधावादी युग में जहाँ सभी लोग अपने अपने सूरक्षित भविष्य का प्रबंध करने में व्यस्त हैं,
 ऐसे समय में भी कुछ युवक महामंडलके भाव एवं आदर्श के अनुसार अपना जीवन गठित करने की चेष्टा 
कर रहे हैं।किन्तु ये युवा अधिकांश क्षेत्रों में एवं अपने परिवार में भी उपहास के पात्र बन जाते हैं। मन के 
दुर्बलतम क्षणों में समाज और परिवार की यह मानसिकता उनके उपर भी अपना प्रभाव डालती है। क्या इस प्रभाव को दूर हटाकर महामंडल के भाव और आदर्श के अनुसार सुंदर जीवन-गठन की अनुप्रेरणा 
दी जा सकती है ? 
उत्तर : इस भोग-वादी युग में सभी लोग जहाँ अपने भविष्य को अधिक से अधिक सुरक्षित कर लेने के दौड़ में
 व्यस्त हो रहे हैं- वे लोग नहीं जानते कि भविष्य है क्या चीज ? जिसको वे अपना भविष्य समझ रहे हैं, वास्तव में वह भविष्य नहीं है, वह एक विराट शून्य है- भविष्य का छिलका है। वास्तव में भविष्य तो 
महामंडल के लड़के ही बना रहे हैं। भविष्य का छिलका  वे लोग ले रहे हैं, और भविष्य का रस तुमलोग ले रहे हो। इसीलिए सच्चा भविष्य तो तुम्हीं लोग बना रहे हो।
इस  भोग-वादी युग में जिसको वे लोग भोग समझ कर भोग रहे हैं, वह वास्तव में भोग नहीं रहे हैं। भोगों ने ही उनको भोग लिया है। वे लोग भ्रम वश असुविधा को ही सुविधा समझ रहे हैं। वे लोग जिसको  अपना 
मुस्तकबिल या भविष्य समझ रहे हैं,वह एक महा शून्य है, एक खोखला भविष्य। जो लोग अपनेजीवन
 गठन की चेष्टा कर रहे हैं, वे अभी थोड़े उपहासास्पद हो सकते हैं, किन्तु जो लोग उपहास कर रहे हैं, वे 
बिलकुल ही मूर्ख हैं। वास्तव में वे मंदबुद्धि या बगलोल किस्म के लोग हैं, किन्तु अपने को बहुत चतुर समझते हैं। वास्तव में जो अपना चरित्र नहीं गढ़ता वह नितांत मूर्ख हैं।
 इसीलिए उनके उपहास करने से हमलोग के कदम क्यों डगमगाने चाहिए ?  उनके उपर 'अपना प्रभाव विस्तार
 कर रहा है ' अर्थात प्रभाव विस्तार करने की चेष्टा कर रहा है। किन्तु हमलोग यदि सतर्क रहें, जो सत्य है, जिसको सुन रहे हैं, उसपर चर्चा करके यदि ठीक ठीक समझ सकें तो इसका प्रभाव हमलोगों पर नहीं पड़ेगा। हमलोग यदि मन की दृढ़ता, विवेक-विचार,इन सबको जाग्रत नहीं रख सकें, तभी प्रभावित होंगे।और 
प्रभावित करने की चेष्टा कोई करेगा, और हमलोग प्रभावित हो ही जायेंगे, यह कोई बात है? 
कोई कारण नहीं है, जो हमें प्रभावित कर सके,  दूसरा प्रभावित करने की चेष्टा करेगा, किन्तु मैं प्रभावित नहीं
 होऊंगा।मेरा संकल्प यदि अटल है, मेरा औचित्य बोध और विवेक बिलकुल स्पष्ट हो, जिसको सत्य के रूप में
 जाना है, उसको यदि भलीभांति समझ लिया जाय तो मैं प्रभावित नहीं होऊंगा। पढाई करने या कैरियर बनाने के साथ साथ ही जो चरित्र-गठन की चेष्टा नहीं करते वे नासमझ है।
इसके लिए अनुप्रेरणा कैसे प्राप्त हो सकती है ?महामंडल के शिविरों में भाग लो, पाठ-चक्र में नियमित रूप से 
जाओ। तब तुम्हारा मन कभी अवसाद ग्रस्त नहीं होगा।  मन जब दुर्बल होता है,तभी ये सब प्रभावित कर 
सकते हैं।सामान्यतः शरीर में एक रोग-प्रतिरोधक क्षमता होती है, जो रोग फ़ैलाने वाले जीवाणुओं से युद्ध 
करके उसको परास्त कर देने की शक्ति रखती है। यदि हमारा शरीर दुर्बल हो जाये, रोग-प्रतिरोधी जीवाणु 
यदि कमजोर हो जाएँ, तभी रोग बाहर दिखाई पड़ेगा। हजारों रोगों के जीवाणु हमलोगों के शरीर में हर समय 
रहते हैं। किन्तु हर समय रोग से हमलोग आक्रांत तो नहीं होते ? क्यों ? 
 हमारा शरीर स्वस्थ और सबल है,इसीलिए वह रोग के जीवाणुओं के साथ युद्ध करता जा रहा है। इसीलिए यदि हमलोग अपने मन को दुर्बल नहीं होने दें, तो यह जो आरोप हम  पर मढने की  कोशिश मूर्ख लोगो के द्वारा की जा रही है, उससे हमारे उपर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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