शनिवार, 26 मई 2012

शक्ति-पूजा का अर्थ [26] परिप्रश्नेन

२६.प्रश्न : मनुष्य यदि स्वयं ही अनन्त शक्ति का भण्डार है, तो उसे शक्ति की पूजा क्यों करनी चाहिए ?
उत्तर :  मनुष्य सचमुच अनन्त शक्ति का आधार है, किन्तु उसे यह रहस्य ज्ञात नहीं है, इसीलिए शक्ति की पूजा अवश्य करनी चाहिए । उसे शक्ति की पूजा इसीलिए करनी चाहिए, क्योंकि वह यह नहीं जानता, कि वह स्वयं ही अनन्त शक्ति आधार है।किन्तु शक्ति-पूजा का अर्थ काली-पूजा या दुर्गा-पूजा करके बकरे की बली चढ़ाना नहीं है।
शक्ति-पूजा का अर्थ है- शक्ति का जागरण. अपने अन्तर्निहित शक्ति के स्रोत को उद्घाटित करने की चेष्टा ही वास्तविक शक्ति-पूजा है.मुझमे शक्ति है, किन्तु अभी वह निद्रित अवस्था में है.मैं अभी अपनी उस अनन्त शक्ति से बिल्कुल अपरिचित हूँ, क्योंकि मुझे अभी तक उसकी कोई अनुभूति नहीं हुई है.इसीलिए उसकी पूजा करनी होगी. 
पूजा करते समय हम क्या करते हैं ? हमलोग पहले देवी-मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा करते हैं. हम आह्वान करते हैं कि प्राण यहाँ आयें, यहाँ निवास करें. यह करने के बाद पूजा का प्रारंभ करते हैं. उसी प्रकार मैं अपनी अनन्त शक्ति का संग्राहक स्वयं हूँ, मेरे भीतर निश्चित रूप से अनन्त शक्ति है, किन्तु वह तो अभी निद्रित है, उसी निद्रित शक्ति को जाग्रत करने के लिए पूजा की जाती है. 
 पूजा करना से तात्पर्य है-उद्बोधन या उस शक्ति-स्रोत का उद्घाटन करना. जो अन्तर्निहित शक्ति अभी सोयी हुई है, उसे जाग्रत कर देना. पूजा का यही अर्थ है. यदि अपनी अन्तर्निहित अचेत शक्ति या निद्रित शक्ति को सचेत कर देना चाहते हों, उसे जाग्रत करना चाहते हों, तो हमें शक्ति-पूजा करनी ही पड़ेगी.
आत्मशक्ति का विस्मरण हो जाने के फलस्वरूप, हमलोग ' भोग एवं मुक्ति ' दोनों के अयोग्य हो गये हैं. हमारी समस्त दुर्गति का कारण-यही है कि हमलोगों ने स्वयं को शक्तिहीन मान लिया है. इसीलिए स्वामीजी ने शक्ति की पूजा, महावीर की पूजा करने का निर्देश दिया था. उनका अभिप्राय किन्तु जिस रूप से दीवाली में जूआ खेल कर और दारू पीकर  हमलोग अभी काली-पूजा, दुर्गा-पूजा कर रहे हैं, या रामनवमी के दिन शराब पीकर तलवार-लाठी भांज रहे हैं, वह सब नहीं था. हमलोगों के शक्ति पूजा
 या महावीर पूजा का लक्ष्य अपनी अन्तर्निहित शक्ति का उद्घाटन करना होगा.

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