गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

" फिलॉस्फी और दर्शन " जीवन नदी के हर मोड़ पर [17]

मायावती में सेवियर (कैप्टन) की स्मृति -फलक '???'
थर्ड ईयर समाप्त हो गया| दिसम्बर का महिना था, परन्तु मैं कभी भी गर्म कपड़े मैं नहीं पहनता था, गर्म कुरता य़ा स्वेटर आदि, कभी पहना ही नहीं था| ऑफिस करने के बाद क्लास करता था, तो एक दिन उन्होंने (केमिस्ट्री के प्रोफ़ेसर प्रियनाथ कुन्डू ने ) टोक दिया, चेहरे को थोड़ा गंभीर करके बोले- " तुम गर्म कपड़े नहीं पहनते हो, तुमको Pox हो जायेगा|" 
Pox एक बहुत ख़राब बीमारी है|इसको चिकेन पोक्स य़ा स्माल पोक्स कहना उचित होगा| जो हो, दिसम्बर के अन्त में- 'I had small pox|' पहली जनवरी के दिन मैं बिस्तर से नहीं उठ पा रहा था, ऑफिस नहीं जा पा रहा था| किसी प्रकार ऑफिस आकर वेतन उठा लिया|घर लौटा तो शरीर में भीषण यंत्रणा हो रही थी, छत पर धूप में एक दरी बिछा कर लेट गया| पहली जनवरी को ही बेहोश हो गया| उसके बाद क्या हुआ, कुछ पता नहीं|
हठात ऐसा लगा मानो मेरे कानों में जो ध्वनी आ रही है, वह मेरी जानी-पहचानी है, मैं उसे जानता हूँ| क्या हुआ है- नेताजी का जन्मदिन है (२३जनवरी?),प्रोसेशन जा रहा है|अरे अरे, यह क्या हुआ, क्या हुआ? - मैं अपने गले से आवाज निकालने की चेष्टा करता हूँ, किन्तु निकाल नहीं पा रहा हूँ|मुझे ऐसा लग रहा था मानो मैं हाथ उठा कर (नेड़े) कह रहा हूँ,' आमि बेंचे आछी '| (मैं जिन्दा हूँ अभी!)किन्तु गले के बाहर आवाज निकाल नहीं रही है|
और यह जो तेइस दिन बीत गये! इसके बीच हर समय स्वप्न के देखने जैसा अनुभव हो रहा है| देखते देखते - एक जगह में देखा कि मैं मर गया हूँ| मुझको सजा-धजा कर बहुत से लोग ले जा रहे हैं| सभी बड़े उदास हैं| मैं सब कुछ देख रहा हूँ|कितना दूर ले जा रहे हैं!जमीन, आकाश, गाँछ-बृक्ष के पत्ते, रंग, बहुत सुन्दर-फूल| कितने बड़े बड़े गाँछ में कितने सुन्दर फूल हैं, जिनको मैं पहचान नहीं पाता|बहुत दूर......| थोड़ी सी पहाड़ी पर चढ़ने के बाद, फिर कुछ नीचे उतर कर धीरे से नीचे रख दिया| चिता सजाया गया है| उसके ऊपर शरीर को रख दिया, अग्नि प्रदान किया गया, मेरा शरीर जल कर राख़ में परिणत हो गया|
बहुत वर्ष बाद जब मैं मायावती गया था, तब उस समय जैसा देखा था, ठीक उसी दृश्य को इस समय देख रहा था|(???) मायावती में जिस स्थान पर सेवियर (कैप्टन) की स्मृति -फलक लगी हुई है, वहाँ पर जैसे गाँछ-बृक्ष, फल-फूल, थोड़ी सी चढ़ाई पर जो नीची जगह है, ठीक उसी जगह को मैंने देखा था, ऐसा लगा| [৩০]
इस सबसे उबर कर ठीक हो जाने के बाद अध्यापक कुन्डू से बोला- " सर आपने कहा था न, मुझे आखिर स्माल पोक्स हो ही गया था|" मैंने तो तुमको कहा था, तुमने गर्म कपड़े क्यों नहीं पहने?' देखिये मुझसे बड़ी भूल हो गयी है|' किन्तु अब क्या होगा ? आप क्या मुझे चतुर्थ वर्ष के क्लास में बैठने का promotion देंगे?" 
उन्होंने कहा, " देखो तुम यदि promotion चाहते हो, तो मेरे कहने से फिजिक्स,केमिस्ट्री और मैथेमेटिक्स तीनो विषयों के प्रोफ़ेसर यदि यह मन्तव्य लिख कर दें कि इसको promotion देने से यह संभाल सकता है, तो हमलोग promotion दे देंगे|किन्तु मुझे ऐसा लगता है, ऐसा करना उचित नहीं होगा| तुम तीन महीने से कॉलेज नहीं आये हो,(१लि जनवरी से मार्च तक,अप्रैल महीने में कॉलेज गया हूँ, नौकरी पर गया हूँ) पढाई नहीं किये हो, ऊपर से तुम नौकरी करते हुए पढ़ते हो, इसीबीच यदि तुमको चतुर्थ वर्ष में promotion दिया जायेगा तो ठीक से पढ़-लिख नहीं पाओगे| तुमको परीक्षा के समय असुविधा होगी| तुम यदि मेरी बात मानो तो, तुम्हें फिर से तृतीय वर्ष में ही नाम लिखाना चाहिये|"
अगले ही दिन मैंने फिर से तृतीय वर्ष में नाम लिखवा लिया| जब उनको जाकर बताया तो, उन्होंने कहा, " भर्ती हुए हो ! वाह, ये तो मैंने सोचा भी नहीं था| आजकल तो छात्र लोग शिक्षकों कि बात मानते नहीं है; मैं तो यह सोंच रहा था कि, तुम फिर से मेरे पास आकर कहोगे- नहीं सर उसी में कर दीजिये |"
" नहीं, मैंने सोचा जब आप कह रहे हैं तो मेरे भले के लिये ही कहे हैं| " फिर से तृतीय वर्ष, चतुर्थ वर्ष की पढाई पूरी किया| 
चतुर्थ वर्ष समाप्त करने के बाद, उसके बाद के वर्ष में परीक्षा दिया|परीक्षा देने के बाद फिर से दूसरी नौकरी की खोज शुरू हुई| Central Fuel Research Institute" जियलगोड़ा में नौकरी मिली|वहाँ पर उस समय Synthetic Petroleum का निर्माण करने पर गवेषणा की जा रही थी| लैबरोटरी में Analysis का कार्य करना पड़ता था|
किन्तु फिर से यह लगने लगा कि और तो कुछ कर नहीं पाउँगा,(क्यूँ ऐसा लगा था अब याद नहीं है) पर बीच-बीच में विचार आता था कि, M.Sc. कर सकता था य़ा नहीं? यूनिवर्सिटी जाकर बुद्धू के जैसा एक व्यक्ति से पूछा- " देखिये, मैंने B.Sc.पास किया है, क्या मै एक private candidate के रूप में M.Sc. की परीक्षा नहीं दे सकता?" उन्होंने बताया, " हाँ हो तो सकता है, किन्तु फिजिक्स, केमिस्ट्री में नहीं मैथेमेटिक्स से हो सकता है|" 
मैथेमेटिक्स का विषय कभी मेरा आकर्षनीय (पसन्दीदा) विषय नहीं रहा है|एस्ट्रोनौमी में मुझे ५० में ५० अंक मिलते थे| ५० अंक का एस्ट्रोनौमी मेरा हाफ पेपर था| मैंने जानना चाहा, " किन्तु अन्य विषयों, फिजिक्स य़ा केमिस्ट्री में क्यों नहीं हो सकता ?" " इसलिए कि फिजिक्स,केमिस्ट्री में practical क्लास किये बिना M.Sc. कैसे होगा, उसके लिये तो ६ घंटा -७ घंटा लैबरोटरी में काम करना पड़ता है|
यह कार्य तो अन्य समय में (प्राइवेट रूप से) नहीं किया जा सकता| तो मैंने पूछा, " दूसरा क्या उपाय है? आर्ट्स के किसी विषय से किया जा सकेगा क्या? "  " हाँ, आर्ट्स के किसी भी विषय में किया जा सकता है| किन्तु B.Sc.पास करने के बाद M.A.में नाम लिखाना चाहने से अंग्रेजी य़ा बंगला में बी.ऐ .की स्पेशल परीक्षा देनी होगी| " 
पन्द्रह दिनों तक पढ़ कर स्पेशल परीक्षा दे दिया और पास हो गया|उसके बाद प्रश्न उठा कि एम्.ऐ. किस विषय में किया जाय? मेरा अपना आकर्षण तो हर समय से दर्शन कि ओर ही रहा है! किन्तु कालेज में नाम लिखाते समय बाबूजी बोले- आर्ट्स नहीं साइन्स पढना है; तो वही किया|
जिस समय मैं आन्दुल स्कूल कि आठवीं कक्षा में था, उस समय हमारे स्कूल में मौड़ी ग्राम के एक सज्जन पुरुष थे, वे हर समय गेरुआ रंग का कुर्ता और सफ़ेद धोती पहना करते थे| उन्होंने विवाह नहीं किया था, केवल संगीत से जुड़े रहते थे, अत्यन्त सज्जन व्यक्ति थे|हमलोग तो स्कूल बिल्डिंग में ही अकेले अकेले रहते थे, इसलिए वे बीच बीच आकर हाल-चाल पूछ लिया करते थे|- " कैसे हो, क्या कर रहे हो? " - इत्यादि बातें कहते रहते थे|
उन्होंने हठात एक दिन मुझसे प्रश्न किया- " तुमको किसकी Philosophy अच्छी लगती है ? " उस समय मैं किन्तु क्लास Eight में ही था, पर मैंने जो उत्तर दिया था वह मुझे अब भी याद है| उसके उत्तर में कहा था- "I have my own Philosophy. " 
( अर्थात ' दर्शन ' को लेकर मेरी बिल्कुल स्पष्ट धारणा है! हमारे भारत में तो ' दर्शन ' प्राप्त कर लेने, अर्थात आत्म-साक्षात्कार य़ा प्रभु दर्शन को ही 'दर्शन' कहा जाता है जबकि philosophy तो अंधरे में ही टटोलते रहने का नाम है!) - इसीलिये मैं दूसरों के philosophy को लेकर अपना दिमाग नहीं लगता! " 
अभी कुछ ही समय पहले मुझे वह चिट्ठी प्राप्त हुई है जिसे- घर से बाहर रहकर नौकरी करते समय मैंने ही बाबूजी को अंग्रेजी में लिखा था- पुराने फाइलों को ढूंढते समय उसमे से निकला और ढेर - सारे कागज -पत्र आदि तो नष्ट हो चुके हैं|किन्तु वह चिट्ठी अभी तक बची हुई है| 
उसमे अपने ही लिखे एक sentence को पढ़ कर मैं तो आवाक ही रह गया था| मैंने उसमे लिखा था-" I know, I was not born for nothing !" (गिरिडीह में टेंडर मिलने के बाद अनुभव हुआ था -'आई नो दैट आई एम अ फिनोमेनन !') 
अर्थात, " मैं कुछ नहीं हूँ, यही कहने के लिये जन्म ग्रहण नहीं किया हूँ! " अभी भी इतना तो हर समय महसूस होता रहता है कि - (मरकर पुनरुज्जीवित होने के बाद ?) " यह शरीर दूसरे का उपकरण  है!"  स्वामी अनन्यानन्दजी ने एक दिन कहा- " Take care of your body. " अर्थात अपने शरीर का ध्यान रखो ! मैंने उत्तर दिया था-" This body is not mine. this is dedicated to Thakur, Maa and Swamiji. What do I care about this body ? " जहाँ पर इसका अन्त होना है, हो ! इसको चाहे गिद्ध नोच खायें, य़ा अग्नि में जला डाला जाय, य़ा जल में फेंक दिया जाय, जो भी होना है, हो जाये!" What did I care about this body? What is this? It's nothing."
और नौकरी के क्षेत्र में एक बहुत बड़े ऑफिसर एक दिन हठात मुझसे कहते हैं - " What is your opinion about Western Philosophy ?" मैंने उत्तर दिया -" Western philosophy is just crawling on all fours. " - अर्थात " पाश्चात्य philosophy तो अभी तक (अपने शैशव काल में ही है) चार पैरों से घुटनों के बल ही चल रहा है! " बचपन से ही मुझमे ऐसी धारणा है |  एवं ठाकुर का जो दर्शन था, माँ का जो दर्शन था, स्वामीजी का जो दर्शन था- उसके निकट तक भी कौन पहुँच सका है ? 
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