सोमवार, 29 मार्च 2010

जीवन नदी के हर मोड़ पर [3] ' प्रेसिडेंसी कॉलेज का कम्बाइन्ड कोर्स 'जीवन नदी के हर मोड़ पर [3]

प्रेसिडेंसी कॉलेज : हैमलेट की भूमिका में पितामह 

पितामह और उनके अग्रज, दोनों भाई प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ते थे| उन दिनों प्रेसिडेंसी कॉलेज में दो प्रकार के कोर्स पढाये जाते थे, एक सिंगल कोर्स दूसरा कम्बाइन्ड कोर्स|दोनों भाइयों ने कम्बाइन्ड कोर्स में पढाई पूरी की थी|अतः उनको फिजिक्स,केमिस्ट्री और मैथेमेटिक्स के साथ साथ हिस्ट्री और फिलासफी पढने का भी अवसर मिला था, वहीँ अंग्रेजी साहित्य का विषय तो खैर दोनों ही कोर्स में अनिवार्य रूप से पढना पड़ता था| किन्तु अंग्रेजी पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर गण भी अंग्रेज ही हुआ करते थे, Tawney, Percival आदि अंग्रेजी साहित्य के बड़े प्रसिद्ध अंग्रेज अध्यापक थे| उनलोगों ने आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र राय से केमिस्ट्री पढ़ा था और आचार्य जगदीश चंद्र बसु उन्हें फिजिक्स पढाया करते थे, वहीँ Tawney, Percival जैसे प्राध्यापक उन्हें अंग्रेजी साहित्य पढ़ाते थे|
छात्र अवस्था में ही, अर्थात प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ते समय ही कोलकाता और आसपास के प्रबुद्ध समाज में दोनों भाइयों का नाम फ़ैल चुका था- कि दो बड़े ही अद्भुत प्रतिभा सम्पन्न लड़के प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढाई कर रहे हैं| कॉलेज में एकबार शेक्सपियर के प्रसिद्ध नाटक ' हैमलेट ' के मंचन कि व्यवस्था हुई थी, और उस नाटक में पितामह ने बहुत सुन्दर, यादगार अभिनय कर के दिखाया था
उनके अभिनय को देखकर एक अंग्रेज अध्यापक ने उनके अभिनय से अभिभूत होकर कहा था- " He acted like Beerbohm Tree !" उस समय हर्बर्ट बिर्भोम ट्री (Herbert Beerbohm Tree) इंगलैंड में शेक्सपियर के नाटकों में अभिनय करने वाले एक विख्यात अभिनेता थे और विशेष तौर से ' हैमलेट ' का किरदार निभाने के लिये प्रसिद्ध थे|

किन्तु पितामह के अभिनय को देखने के बाद सभी दर्शकों का यही कहना था कि - हैमलेट की भूमिका निभाते समय उनकी वेशभूषा और भावभंगिमा कुछ अलग हे ढंग की थी जिसने उनके अभिनय को हर्बर्ट बिर्भोम ट्री के जैसा जीवन्त बना दिया था!  
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" हैमलेट का अन्तर्द्वन्द है - to Be or not to Be....?"

गीता की सीख है - न दैन्यं न पलायनम ! 

[हैमलेट शेक्सपीयर का लिखा एक प्रसिद्द नाटक है इसी नाटक में हैमलेट द्वारा अक्सर उधृत किया जाने वाला डॉयलॉग है- हैमलेट का एकालाप....to be or not to be.... यह हैमलेट के अंतर्द्वंद का चित्रण है।  जिसमें हैमलेट तर्क देता  है कि जीवन बेहतर है या मृत्यु. इसी का एक अंश है जिसमें हैमलेट कहता है कि मृत्यु एक नींद है...पर नींद के बाद कैसे सपने आयेंगे...? यानी कि मृत्यु के बाद का जीवन, जिसे 'आफ्टर लाइफ़' कहते हैं उसके बाद क्या होता है ये भी नहीं पता है ?

भगवद्गीता के आरम्भ में परस्पर–विरुद्ध दो धर्मों की उलझन में फँस जाने के कारण अर्जुन जिस तरह कर्त्तव्यमूढ़ हो गया था और उस पर जो मौक़ा आ पड़ा था, वह कुछ अपूर्व नहीं है। युद्ध के आरंभ में ही अर्जुन को कर्त्तव्य–जिज्ञासा और मोह हुआ। ऐसा मोह युधिष्ठिर को युद्ध में मरे हुए अपने रिश्तेदारों का श्राद्ध करते समय हुआ था। उसके इस मोह को दूर करने के लिए ‘शांति–पर्व’ कहा गया है। 
कर्माकर्म संशय के ऐसे अनेक प्रसंग ढूढ़कर अथवा कल्पित करके उन पर बड़े–बड़े कवियों ने सुरस काव्य और उत्तम नाटक लिखे हैं। उदाहरणार्थ, सुप्रसिद्ध अंग्रेज़ नाटककार शेक्सपीयर का हैमलेट नाटक ही ले लीजिए। डेनमार्क देश के प्राचीन राजपुत्र हैमलेट के चाचा ने, राज्यकर्त्ता अपने भाई हैमलेट के बाप को मार डाला, हैमलेट की माता को अपनी स्त्री बना लिया और राजगद्दी भी छीन ली।
तब उस राजकुमार के मन में यह झगड़ा पैदा हुआ कि ऐसे पापी चाचा का वध करके पुत्र–धर्म के अनुसार अपने पिता के ऋण से मुक्त हो जाऊँ; अथवा अपने सगे चाचा, अपनी माता के पति और गद्दी पर बैठे हुए राजा पर दया करूं? इस मोह में पड़ जाने के कारण कोमल अंतःकरण के हैमलेट की कैसी दशा हुई। श्रीकृष्ण के समान कोई भी मार्ग–दर्शक और हितकर्त्ता न होने के कारण वह कैसे पागल हो गया और अंत में ‘जियें या मरें’ इसी बात की चिंता करते–करते उसका अंत कैसे हो गया, इत्यादि बातों का चित्र इस नाटक में बहुत अच्छी तरह से दिखाया गया है।]


Sir Herbert Beerbohm Tree

 (born Dec. 17, 1853, London, Eng. — died July 2, 1917,

London)




" That skull had a tongue in it, and could sing once ! " 

English actor Herbert Beerhohm Tree as Hamlet in c1892

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